SIP vs PPF : SIP मतलब Systematic Investment Plan म्युचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट करने का बढ़िया तरीका है। एसआईपी के जरिए हर माह एक तय रकम तय तारीख को म्युचुअल फंड की स्कीम में निवेश की जाती है। निवेशित रकम से यूनिट्स खरीदीं जाती हैं।
निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव से बेपरवाह हो अनुशासित तरीके से निवेश करता है। बाजार की गिरावट में तय राशि में अधिक यूनिट्स, जबकि चढ़ते बाजार में कम यूनिट्स खरीदी जाती हैं। निवेश के इस स्मार्ट तरीके से सुस्त बाजार में ज्यादा यूनिट्स खरीदकर चढ़ते बाजार में यूनिट्स बेचने पर तगड़ा मुनाफा कमाया जाता है।
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ये हैं SIP के बड़े-बड़े गुण
SIP vs PPF : 5 साल से ज्यादा समय के लिए की जाने वाली एसआईपी में यूनिट्स की एवरेजिंग और कंपाउंडिग का बढ़िया लाभ मिलता हैं।
अनुभव में आया है कि लम्बे समय की SIP जोखिम को मिनिमाइज कर खत्म कर देती है। म्युचुअल फंड की ओपेन एंडेड स्कीम में की गई एसआर्इपी यूनिट्स को कभी भी भुनाया जा सकता है। यानी इनमें लिक्विडिटी की मात्रा अधिक होती है।
कोई निवेशक अपनी दीर्घकालिक जरूरत के मुताबिक एसआईपी के जरिए आर्थिक लक्ष्य बना सकता है। जैसे- मकान या फ्लैट खरीदना, कार खरीदना, बच्चों की हायर एजूकेशन, शादी आदि। और ये सभी लक्ष्य म्युचुअल फंड के तगड़े रिटर्न के साथ हासिल किये जा सकते हैं।
म्युचुअल फंड और SIP के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप इन लिंक्स पर जा सकते हैं-
1- SIP kya hai : म्युचुअल फंड की SIP के क्या हैं शानदार फायदे, जानें यहां
2- Mutual fund kya hain | What is mutual fund in hindi
SIP vs PPF : पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड के क्या हैं फीचर्स
PPF मतलब पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड सरकार की ओर से चलाई जाने वाली लोकप्रिय योजना है। ये योजना उन प्राइवेट नौकरीपेशा लोगों के लिए अच्छी मानी जाती हैं, जिनका पीएफ अंशदान एम्पलॉयर नहीं देता।
पब्लिक प्रोविडेंट फण्ड के तहत गारंटीड रिटर्न मिलता है। सरकार ब्याज का निर्धारण प्रत्येक तिमाही आधार पर करती हैं।
पीपीएफ में पैसा जमा करने के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना होता है। ये खाता 15 साल की अवधि के लिए खुलता है। हालांकि, आवेदन देकर इसकी अवधि को 3 साल और बढ़ाया जा सकता है।
जमाकर्ता को मैच्योरिटी के बाद पूरा अमाउंट ब्याज सहित मिल जाता है। इस रकम पर कोई टैक्स नहीं लगता। PPF अकाउंट पर लोन की सुविधा भी मिलती है।
सालाना 1.5 लाख रुपये तक जमा
महज 100 रुपये से पीपीएफ खाता खोला जा सकता है। इसमें 15 साल तक प्रतिमाह 500 रुपये जमा करके बड़ा फंड आसानी से तैयार किया जा सकता है। खाते में सालाना न्यूनतम धनराशि 500 रुपये और अधिकतम 1.5 लाख रुपये जमा किये जा सकते हैं। जमा पर आयकर छूट का लाभ भी मिलता है।
साल 2020 की अंतिम तिमाही अक्टूबर-दिसंबर के लिए PPF इंटरेस्ट रेट 7.1 प्रतिशत तय किया गया है। आगे इस लेख में आप बीते सालों में पीपीएफ इंटरेस्ट रेट की तालिका देख सकते हैं।
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SIP vs PPF : हमने यहां SIP और PPF के बारे में सभी जरूरी जानकारियां दे दी हैं। अब हम यहांं दोनों तरह के इंस्ट्रूमेंट्स की जांच 5 महत्वपूर्ण पैमानों पर करेंगे। जांच करेंगे कि इनके मजबूत और कमजोर पक्ष क्या हैं।
पैमाना PPF SIP (म्यूचुअल फंड्स)
सुरक्षा उच्च मध्यम
रिटर्न मध्यम अधिक*
लिक्विडिटी कम अधिक
टैक्सेशन पूरी तरह से छूट कम दरें **
रिसर्च के आंकड़े बताते हैं कि म्युचुअल फंड योजना में लम्बे समय के लिए निवेश करने पर अधिक लाभ मिलता है।
** इक्विटी और डेब्ट फंड में क्रमशः 1 साल और 3 सालों के लिए रखने पर 10% से 20% तक टैक्स लग सकता है।
SIP vs PPF में तुलनात्मक अध्ययन
1) आपका पैसा कितना सुरक्षित?
PPF भारत सरकार का बचत उपकरण है। सरकार इसमें जमा किये गए पैसों का उपयोग जनहित की योजनाओं में करती हैंं। तिमाही ब्याज की घोषणा केंद्र सरकार का वित्त मंत्रालय समय समय पर करता है। इसी के अनुसार ब्याज का भुगतान ग्राहकों को किया जाता है।
चूंकि पूरा नियंत्रण सरकार का है, इसलिए पीपीएफ में जमा पैसा सुरक्षित होता है। यहां किसी धोखाधड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है।
वहीं, म्युचुअल फंड में लगा पैसा बाज़ार जोखिमों के अधीन होता है। इक्विटी स्कीम के पोर्टफोलियो में रखे गए कंपनियों के शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर फंड एनएवी में रोजाना परिवर्तन होता है।
कई तरह के बॉन्ड्स की कीमतों में बदलाव के कारण भी डेब्ट फंड्स की एनएवी में मामूली ही सही बदलाव होता है।
म्युचुअल फंड 5 साल से ज्यादा समय के निवेश पर अधिक लाभ देने का वादा करते हैं। म्युचुअल फंड स्कीम्स में मोटा रिटर्न दिलाने की जवाबदेही अनुभवी और योग्य फंड मैनेजर्स पर
होती हैं।
वे निवेशकों का पैसा स्कीम्स की निवेश प्रकृति के तहत इन्वेस्ट करते हैं। निवेशक को बस चुनिंदा स्कीम में निवेश करने का फैसला लेना होता है। अच्छे लॉन्ग-टर्म म्यूचुअल फण्ड स्कीम में जोखिम की मात्रा कम होते-होते लगभग गायब हो जाती है।
हालांकि मार्केट रिस्क होने की वजह से अस्थिरता का तत्व बना रहता है, जिसे जोखिम कहा जाता है। जो कहीं न कहीं बना ही रहता है।
हालाँकि, SIP के जरिए म्युचुअल फंड्स में लगाए गए पैसों से निवेश जोखिम को मिनिमाइज किया जाता है। अगर ये काम मैनुअली टॉपअप करके किया जाए तो निवेशक को मुनाफा कमाने से कोई नहीं रोक सकता।
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2) रिटर्न कितना ?
PPF अकाउंट की मैच्योरिटी पर निेवेशक को जमा धन ब्याज सहित मिल जाता है। रिटर्न पर सरकार की गारंटी होती है।आमतौर पर खाता 15 साल में मैच्योर हो जाता है।
पीपीएफ की ब्याज दरें असमान ही रही हैं। हालांकि पहले के सालों की तुलना वर्ष 2020 में इनकी ब्याज दरों में काफी कमी देखी गई है। ये रिकॉर्ड निम्नलिखित हैं:
अवधि वर्ष ब्याज
अक्टूबर- दिसंबर 2020 7.1%
जुलाई- सितंबर 2020 7.1%
अप्रैल- जून 2020 7.9%
अक्टूबर- दिसंबर 2019 7.9%
जुलाई- सितंबर 2019 7.9%
अप्रैल- जून 2019 8%
जनवरी – मार्च 2019 8 %
अक्टूबर – दिसंबर 2018 8 %
जुलाई – सितंबर 2018 7.6%
अप्रैल – जून 2018 7.6%
जनवरी – मार्च 2018 7.6%
अक्टूबर – दिसंबर 2017 7.8%
जुलाई – सितंबर 2017 7.8%
अप्रैल – जून 2017 7.9%
जनवरी – मार्च 2017 8%
अक्टूबर – दिसंबर 2016 8.1%
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दूसरी ओर, इक्विटी म्युचुअल फंड्स स्कीम्स के रिटर्न सीधे बाज़ार पर आधारित होते हैं। अर्थव्यवस्था और बाजार की परिस्थितियां, कंपनियों की तिमाही रिपोर्ट और प्रदर्शन, फंड मैनेजर की सूझबूझ रिटर्न को बढ़ाने में सहायक होते हैं। भारत के कुछ स्कीम्स के रिटर्न निम्नवत हैं।
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टॉप 10 म्युचुअल फंड स्कीम्स अवधि 10 साल
मिराए एसैट लार्ज कैप फंड 13.24 %
प्रिंसिपल एमर्जिंग ब्लूचिप फंड 14.15%
मिराए एसैट एमर्जिंग ब्लूचिप फंड 19.96%
कोटक स्टैंडर्ड मल्टीकैप फंड 12.58%
डीएसपी मिडकैप फंड 14.15 %
कोटक एमर्जिंग एक्विटी फंड 14.34%
निप्पान इंडिया स्माल कैप फंड 17.02%
एसबीआई स्माल कैप 18.81%
एबीएसएल टैक्स रिलीफ 96 फंड 11.05%
इनवेस्को इंडिया टैक्स प्लान 12.65%
स्रोत : उपरोक्त आंकडे लाइवमिंटडॉटकॉम से लिए गए हैं।
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3) कौन से निेवेश में ज्यादा लिक्विडिटी ?
SIP vs PPF : PPF अकाउंट में जमा धन की मैच्योरिटी 15 वर्ष होती है। इसलिए लॉक-इन अवधि 15 साल मानी जाती है। हालांकिे खाता खोलने के तीन साल बाद और 6 साल पहले तक लोन ले सकते हैं। अकाउंट खोलने के 5 साल पूरा होने के बाद आप पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) से थोड़ा पैसा निकाल सकते हैं।
वहीं, आपका निवेश यदि इक्विटी म्युचुअल फंड की ओपन-एंडेड स्कीम में हैं, तो आप कभी भी यूनिट्स को बेचकर रिटर्न कमा सकते हैं। क्लोज एंडेड फंड्स (जिनमें 3 साल का लॉकइन रहता है) को छोड़कर म्युचुअल फंड के निवेश से बाहर निकलना बेहद आसान है।
हालांकि एक साल से पहले म्युचुअल फंड से पैसा निकालने पर सामान्य तौर पर 1 प्रतिशत एक्जिट लोड और 15 प्रतिशत शार्ट टर्म कैपिटेल गेन टैक्स लगता है। हालांकिे एक्जिट लोड को आसान भाषा में जुर्माना कहा जा सकता है।
जबकि 1 साल से ज्यादा के निवेश पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। वह भी एक साल बाद फंड बेचने और एक लाख से ज्यादा रिटर्न कमाने पर देना होता है। इस सूरत में आमतौर पर 1 प्रतिशत का एक्जिट लोड नहीं लगता। रिडेम्पशन पर टैक्स चुकाने के बावजूद म्युचुअल फंड का रिटर्न शानदार बना रहता है।
इसके अलावा म्युचुअल फण्ड की ईएलएसएस स्कीम यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स क्लोज एंडेड होती हैं। इन्हें टैक्स सेवर म्युचुअल फंड्स या टैक्स सेविंग स्कीम्स के नाम से भी जाना जाता है। इनमें 3 साल का लॉकइन पीरियड होता है। ईएलएसएस स्कीम में निवेश के तीन साल के भीतर रिडेम्पशन नहीं किया जा सकता है।
PPF की तरह ही आप ज़रूरत पड़ने पर म्युचुअल फंड को गिरवी रखकर बैंक या किसी वित्तीय संस्थान से लोन ले सकते हैं। लोन कुल फंड वैल्यू के 50 प्रतिशत तक के मूल्य का लिया जा सकता है।
जाहिर है कि लिक्विडिटी के मामले में म्युचुअल फंड का ये फीचर PPF खाते में जमा पैसों पर भारी बैठता है।
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4) PPF रिटर्न पर नहीं लगता कोई टैक्स
PPF अकाउंट में जमा पर मिलने वाला ब्याज और मैच्योरिटी अमाउंट टैक्स फ्री होता है। हालांकि अर्जित ब्याज को सालाना आईटीआर में दिखाया जाना जरूरी है।
वहीं, म्युचुअल फंड के ईएलएसएस स्कीम में सालाना 1.5 लाख रुपये तक के जमा पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 80C के तहत टैक्स छूट मिलती हैं।
हालांकि, ये टैक्स छूट म्युचुअल फंड के अन्य प्रकारों में शामिल नहीं हैं। ईएलएसएस फंड में निवेश का मकसद निवेशकों को पैसे आयकर के बचाते हुए निवेश कराने से होता है।
म्युचुअल फंड रिटर्न पर कौन से टैक्स लगते हैं?
म्युचुअल फंड के रिटर्न यानी लाभ पर दो तरह के टैक्स लगते हैं। ये निम्नवत हैं-
1- शॉर्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्स
2- लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन टैक्स
1-शॉर्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्स (STCG) क्या होता है ?
इक्विटी म्युचुअल फंड से पैसा 12 माह के भीतर रिडीम करने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। जो कुल लाभ का 15 प्रतिशत होता है।
उदाहरण के तौर पर माना कि किसी इक्विटी आधारित म्युचुअल फंड में एकमुश्त 10 हजार रुपये का निवेश 11 माह में 12 हजार रुपये हो जाता है। तो निवेशक को 2 हजार का लाभ दिखाई देगा। इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहा जाएगा।
अगर निवेशक पूरे पैसे निकाल लें तो उसे महज 2 हजार रुपये पर 15 प्रतिशत टैक्स देना होगा। ना कि पूरे अमाउंट 12 हजार पर। मतलब 2000 रुपये का 15 प्रतिशत अमाउंट 300 रुपये होता है, जिसे शार्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स के रूप में चुकाना होता है। इस तरह निवेशक को 1700 रुपये का लाभ हुआ।
वहीं, डेट आधारित म्युचुअल फंड का रिडेम्पशन निवेश के 36 माह के भीतर करने पर इनकम टैक्स स्लेब के अनुसार शॉर्ट टर्म कैपिटल टैक्स लगता है।
2- लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन टैक्स (LTCG) क्या होता है?
लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन टैक्स यानी LTCG निवेश के 12 माह की अवधि पूरा होने के बाद रिडीम किए गए फंड वैल्यू पर लगता है। इक्विटी म्युचुअल फंड के रिटर्न पर ये टैक्स 10 फीसदी लगता है।
उदाहरण के लिए माना कि 10 हजार की रकम 1 साल निवेशित रहने के बाद 12 हजार रुपये हो जाती है। यहां मूल रकम के सापेक्ष 2 हजार यानी 20 प्रतिशत का रिटर्न दिख रहा है।
इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहा जाएगा। अब इस 2 हजार पर 10 प्रतिशत के हिसाब से लॉन्ग टर्म कैपिटल गैन टैक्स देना होगा, जो 200 रुपये होता है। इस प्रकार फंड पर कुल लाभ 1800 रुपये होगा।
वहीं, डेट आधारित म्युचुअल फंड का रिडेम्पशन निवेश के 36 माह बाद करने पर रिटर्न पर 20 प्रतिशत के अनुसार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है। इसमें इंडेक्सेशन यानी महंगाई से छूट प्राप्त
होती है।
स्कीम का प्रकार शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स
इक्विटी म्युचुअल फंड 12 माह तक 12 माह से अधिक
टैक्स दर 15% 10%
डेब्ट म्युचुअल फंड 36 महीने तक 36 महीने से अधिक
टैक्स रेट इनकम टैक्स स्लैब मुनाफे पर महंगाई दर के बाद 20%टैक्स
इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन के रूप में 1 लाख रुपये तक के लाभ पर सालाना कोई टैक्स नहीं लगता। मतलब यदि यूनिट्स बेचने के बाद मूल रकम के सापेक्ष 1 लाख रुपये से कम का लाभ हो तो टैक्स में छूट दी जाती है।
उदाहरण के लिए यदि वर्ष 2019-20 में 1 लाख के निवेश पर आपका लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन 1.75 लाख रुपये है, तो केवल 75,000 रुपये पर टैक्स लगेगा|
SIP (Systematic Investment Fund) के केस में म्युचुअल फंड पर लागू टैक्स ‘फर्स्ट इन फर्स्ट आउट’ (FIFO) सिद्धांत पर आधारित होता है। जब आप अपने रिडेम्पशन/बेचने के लिए रिक्वेस्ट करते हैं तो पहले खरीदी गई यूनिट्स को रिडीम यानी बेचा जाता है। उसी के अनुसार लाभ पर टैक्स लगता है।
SIP और PPF में क्या Best हैं?
सच ये हैं कि PPF और SIP में तुलना करना बेहद मुशिकल काम है। पीपीएफ में ब्याज पर मिलने वाला रिटर्न यानी सबकुछ तयशुदा होता है, जबकि एसआईपी में रिटर्न आदि कुछ भी निर्धारित नहीं है।
PPF में निवेश उन लोगों के लिए बेहतर आप्शन हैं, जो कतई जोखिम नहीं उठाना चाहते।
जो लोग निवेश पर ज़्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए कैलकुलेटिव यानी मध्यम स्तर का जोखिम लेने को तैयार हैं, वे म्युचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।
बता दें कि म्युचुअल फंड्स में लंबी अवधि की SIP और डायवर्सिफिकेशन के जरिए निवेश के रिस्क को बेहद कम किया जाता है।
PPF में निवेश जरूरत के वक्त पैसा निकालने के लिए अच्छा नहीं है। क्योंकि PPF खाते की लॉक इन अवधि 15 साल होती है। लिक्विडिटी यानी जब चाहे पैसा निकालने के मामले में म्युचुअल फंड में निवेश अधिक बेहतर ऑपशन है।
PPF और म्युचुअल फंडस की ELSS कैटेगरी में इनकम टैक्स की धारा 80सी के तहत टैक्स में छूट ली जा सकती है। वहीं, PPF से मिलने वाले लाभ के अलावा मैच्योरिटी बेनेफिट पर भी टैक्स छूट मिलती है।
यहां गौर करने वाली बात ये हैं कि पिछले 15 साल के आंकड़े बताते हैं कि म्युचुअल फंड SIP का रिटर्न PPF अकाउंट की मैच्योरिटी पर मिलने वाली धनराशि का औसतन 1.5 गुना रिटर्न देते हैं।
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जरूरी बात
बता दें कि अगर आप अगर म्युचुअल फंड में निवेश के इच्छुक हैं तो ऑनलाइन निवेश के लिए आपको डीमैट अकाउंट खोलना होगा। इसके लिए NJ India Invest Ltd में E Wealth Account पर जाकर रजिस्ट्रेशन करें। यहां पैन कार्ड, आधार अपलोड कर अपना केवाईसी प्रोसेस पूरा करें।
आपके ईमेल पर अकाउंट का कन्फर्मेशन आते ही आप निवेश के लिए तैयार हो जाएंगे। किसी तरह की असुविधा होने पर आप 7860678995 पर WHATSAPP संपर्क कर सकते हैं। इस पर आपको आजीवन फ्री सलाह दी जाएगी।
उम्मीद है कि आपको “SIP vs PPF : कौन सा निवेश आपको बनाएगा करोड़पति ?” लेख पसंद आया होगा।