Claim settlement ratio kya hai : लाइफ इंश्योरेंस प्लान खरीदने से पहले उसका क्लेम सेटलमेंट रेशियो देखना बेहद जरूरी है। क्लेम सेटलमेंट रेशियो बताता है कि बीमा कंपनी ने आए हुए डेथ क्लेम के सापेक्ष कितनी पॉलिसी पर क्लेम का भुगतान किया है।
इसका प्रतिशत बताता है कि बीमा कंपनी के अंडरराइटिंग नियम ज्यादा कड़े नहीं हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जितना ज्यादा क्लेम रेशियो होगा, उतनी बढ़िया वह लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी होगी। लाइफ और टर्म इंश्योरेंस बेचने वाली कंपनियां हर साल अपने क्लेम रेशियो के आंकड़े जारी करती हैं।
Claim settlement ratio kya hai : क्या है क्लेम सैटलमेंट रेशियो?
Claim settlement ratio kya hai : आसान भाषा में कहे तो क्लेम सेटलमेंट रेशियो एक फाइनेंशियल ईयर में इंश्योरेंस कंपनी की ओर से किए गए क्लेम निपटारों के प्रतिशत से होता है।
दूसरे शब्दों में, फाइनेंशियल ईयर में जितने डेथ क्लेेम आते हैं उसके सापेक्ष कितने क्लेम का बीमा कंपनी ने सेटलमेंट किया है, वह आंकड़ा या प्रतिशत क्लेम सेटलमेंट रेशियो कहलाता है।
आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं…
अगर एक फाइनेशियल ईयर में 1000 डेथ क्लेम किसी बीमा कंपनी के पास आए हों। उस कंपनी ने 980 क्लेम का भुगतान पॉलिसी नियमों के मुताबिक किया हो तो लाइफ इंश्यो रेंस कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो 98 प्रतिशत होगा। यहां क्लेम रिजेक्शन रेट महज 2 प्रतिशत है।
इसका मतलब बीमा कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो बेहतरीन है। इस कंपनी से लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ली जा सकती है।
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जांचें सही क्लेम सेटलमेंट रेशियो
लाइफ इंश्योइरेंस पॉलिसी लेते वक्त बेहतरीन क्लेम सेटलमेंट रेशियो वाली कंपनी का चुनाव करना चाहिए। बीमा नियामक यानी इरडाई हर साल क्लेम सेटलमेंट रेशियों की सूची जारी करता है।
कम से कम 90 प्रतिशत क्लेम सेटलमेंट रेशियो वाली जीवन बीमा कंपनियों से ही लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी लेनी चाहिए। महज एक साल का रेशियो देखने की बजाय 3 से 5 साल का क्लेम सेटलमेंट रेशियो देखना आवश्यक है।
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क्या करें कि आसानी से मिलें क्लेम
जीवन बीमा पॉलिसी लेते वक्त सही सूचना देना बेहद जरूरी है। किसी वजह से गलत सूचना देने पर क्लेम सेटलमेंट में परेशानी आना स्वाभाविक है।
पॉलिसी धारक को चाहिए कि वह खुद पॉलिसी डॉक्यूेमेंट चेक करें और फॉर्म में खुद से सही जानकारी भरें। फॉर्म में गलत तथ्यों को कतई न भरें और न कुछ छिपाएं।
पॉलिसी के कागजातों में सही सूचना दर्ज होने पर क्लेम सेटलमेंट लेने में कोई दिक्कत नहीं आती। नतीजतन जरूरत के वक्त क्लेम सेटलमेंट में आसानी होती है।
कोशिश यह जानने की भी करनी चाहिए कि बीमा कंपनियां किन कारणों के कारण क्लेम रिजेक्ट कर देती हैंं। क्या वे कारण वैलिड हैं, इसका भी आकलन करें। अगर कोई इतनी रिसर्च के बाद टर्म प्लान लेता है तो जाहिर है किसी अनहोनी की हालत में उनके नॉमिनी बड़ी असुविधा से बच सकते हैं।
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